बाबरी मस्जिद और पाकिस्तानी हिन्दू
तारीख 06 दिसंबर 1992, दोपहर का वक़्त था हम सब बच्चे पाकिस्तान के सिंध सूबे के छोटे से शहर छाछरो में अपने घर से थोड़ी सी दूरी पर खेल रहे थे, इतने में हमारे ड्राइवर अंकल दौड़ते हुए हमारे पास आए और हम सब बच्चो को जल्दी से अपने घर चलने का कहने लगे, हम लोग अभी कुछ समझ पाते इतने में दूसरी तरफ से एक भीड़ जिन के हाथों में पत्थर और लाठियां थी लेते हुए हमारे सामने आने लगी, ड्राइवर अंकल ने जैसे तैसे हम को वहां से निकल कर हम सब बच्चों को अपने घर तक पोहचाया, इन सब के बीच कुछ पत्थर हमारे ड्राइवर अंकल ने भी खाए थे.
जैसे ही हम घर के अंदर दाखिल हुए हैं हमारे घर पर मौजूद ब्लैक एंड व्हाइट टीवी में बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की खबर लाईव चल रही थी, उस जमाने में रंगीन टीवी हुआ नहीं करते थे और हमारे घरों में अन्तिना लगी होती थी जो पाकिस्तानी चैनल पीटीवी साफ पकडती थी और छाछरो शेहर का भारत की सरहद के काफी पास होने की वजह से दूर दर्शन भी टीवी पर आ जाया करती थी. मेरे पापा उस वक़्त छाछरो में सरकारी बैंक नेशनल बैंक ऑफ़ पाकिस्तान के चीफ मैनेजर हुआ करते थे. और जिस मकान में रहा करते थे उसकी बाउंड्री में करीब दस हिन्दू परिवार भी हमारे साथ रहा करते थे.
शाम होते होते हमारे घर पर कट्टर मुसलमानों ने हमारे घर पर हमला कर दिया था, हम सब लोग एक जगह डरे सहमे से छुपे रहे. आतंक का ये कारवाँ हमारे घर से निकल कर पास में मौजूद हिन्दुवों की दुकानों तक जा पहुंचा और एक एक करके हिंदुओं की सभी दुकानों को चुन चुन कर वहां हमला किया गया. लूटपाट भी हुई.
हम ने पुलिस को बुलाया लेकिन पुलिस ने उल्टा हम सब को ही खामोशी से छुपे रहने की सलाह दे डाली, ये सब सिलसिला करीब पंद्रह दिनों तक ऐसे ही चलता रहा, इसी बीच खबर आई कि छाछरो के पास मौजूद शहर उमरकोट में शिव मंदिर में सो रहे चार हिन्दू पंडितों को भी गर्दन काट कर उन को मौत के घाट उतार दिया गया. न सिर्फ उन पंडितों को लेकिन उन के साथ साथ काफी सारे ग़रीब मजलूम हिन्दुवों को भी जान गवा देनी पड़ी, लेकिन इन दंगो का कही कोई रिकॉर्ड नहीं मिलेगा, आखिर कौन रखता उन सब का हिसाब, सरकार उन्हीं की थी और ना ही उस वक़्त की मीडिया इतनी एडवांस थी और न ही सोशल मीडिया या इंटरनेट का दौर हुआ करता था, ख़बरें सिर्फ अखबारों के जरिया लोगों तक पोहुंचा करतीं थी जो भी छपने वाले वही लोग हुआ करते थे.
हिन्दू मंदिरों पर कहने को पुलिस खड़ी कर दी गयी लेकिन उस के बावजूद काफी सारे मंदिरों को गिरा दिया गया, जिन में से लाहोर में मौजूद जैन मंदिर के गिराए जाने के सबूत, तस्वीरें आज भी सर्रे आम फैलाई जा रही है. वहीं दूसरी तरफ कुछ मंदिरों में मौजूद भगवन की मूर्तियों को भी खंडित कर दिया गया. कहने को हमारी जिंदगी का एक हादसा था ये लेकिन आज जहाँ हर कही राम मंदिर को बनाए जाने की खबरों में कार सेवकों को शाबाशी दी जा रही है वैसी ही एक शाबाशी के हकदार उस वक़्त के हिन्दू परिवार भी हैं, जिनमें से काफी सारे गरीब थे जिन का कोई लेना देना नहीं था मस्जिद को गिराए जाने में लेकिन उनको भी पिसना पड़ा इन सब में. काफी लोगों ने वहां हुए दंगों में अपनी जान भी गवा दी थी, और काफी सारे हिंदुओं ने पाकिस्तान को छोड़ कर दूसरे देशों ख़ास कर भारत में आकर पनाह ले ली.
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