क्यों और कैसे निकाली जाती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा?
 
                            आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि में हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, 07 जुलाई 2024 रविवार को यह रथ यात्रा निकलेगी। रथ यात्रा में तीन रथ होती हैं। बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल तथा हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या 'पद्म रथ' कहा जाता है, जो काले या नीले एवं लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।
क्यों निकाली जाती है यात्रा
ज्येष्ठ मास के पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा एवं बड़े भाई बलभद्र को गर्भगृह से बाहर लाकर स्नान कराया जाता है। कहा जाता है कि इसके पश्चात् भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं तथा उन्हें बुखार आ जाता है, जिस वजह से वह 15 दिनों तक शयन कक्ष में विश्राम करते हैं। इस के चलते भक्तों को दर्शन की अनुमति होती। तत्पश्चात, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन वह स्वस्थ होकर अपने विश्राम कक्ष से बाहर आते हैं। इस खुशी में भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है।
कैसे की जाती है यात्रा?
भव्य पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण एवं देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथों का निर्माण किया जाता है। सबसे आगे बलराम जी का रथ चलता है, बीच में बहन सुभद्रा एवं सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता है। विशालकाय रथों पर विराजमान होकर भगवान, मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जहां वह कुछ दिनों के लिए विश्राम करते हैं। फिर वह पुनः अपने घर लौट आते हैं।
 
   
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