एयरो इंडिया 2025 में आम लोगों के इस्तेमाल योग्य सैन्य उपकरणों ने मचाई धूम
बेंगलुरु, बुधवार, 12 फ़रवरी 2025। पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए आमतौर पर लंबे चौड़े पवन टर्बाइन लगाने की व्यवस्था करनी पड़ती है, लेकिन एक अधिकारी ने कहा कि भारतीय वायु सेना द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित एक असाधारण उपकरण ‘उषा-ऊर्जा’ में बहुत कम जगह पर भी पवन ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। ‘एयरो इंडिया 2025’ में आकर्षक नवाचारों के बीच हो सकता है कि कई लोगों की नजर इस असाधारण यंत्र पर न पड़े, लेकिन यह उपकरण अत्यधिक ऊंचाई और भीषण ठंडे मौसम में बिजली पैदा करता है, जिसे एक सूटकेस जैसी चीज में रखा जा सकता है। उषा-ऊर्जा के ‘पवन टर्बाइन’ में दो खुले पीवीसी पाइप का उपयोग किया गया है। इन्हें एक आधार पर अजीब आकार में मोड़ दिया गया है, जिसे बढ़ाया जा सकता है। यह भारतीय वायुसेना के स्वदेशी नवाचारों का हिस्सा है, जिसे 14 फरवरी तक बेंगलुरु के येलहांका एयरफोर्स बेस में आयोजित एयरो इंडिया 2025 शो में प्रदर्शित किया गया है। उषा-ऊर्जा उन क्षेत्रों में सेना के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है जहां पर्यावरणीय परिस्थितियां बैटरी चालित जनरेटर या पारंपरिक डीजल जनरेटर के प्रदर्शन को खराब करती हैं।
भारतीय वायुसेना की ‘मेंटेनेंस कमांड’ के ग्रुप कैप्टन केडीए राजेश ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘लोगों को उषा-ऊर्जा पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह हमारे कुछ आविष्कारों में से एक है। इसे आम लोग और सेना दोनों इस्तेमाल कर सकते हैं।” उपकरण बनाने पर भारतीय वायुसेना ने 5.67 लाख रुपये खर्च किए हैं, लेकिन यह 4.14 लाख रुपये में उपलब्ध होगा। राजेश ने कहा कि जब इसे आम लोगों के उपयोग के लिए अपनाया जाएगा, तो मांग के आधार पर यह लागत और भी कम हो सकती है। राजेश एक अन्य स्वदेशी रूप से विकसित उपकरण की ओर इशारा करते हैं, जिसे आम लोग और सेना दोनों इस्तेमाल कर सकते हैं। यह ड्रोन को रोकने वाली एक प्रणाली है।
राजेश ने कहा, ‘यह एक कम लागत वाली ड्रोन रोधी प्रणाली है जो आरएफ सिग्नल जैमिंग की अवधारणा पर आधारित है और ड्रोन के खिलाफ 500 मीटर की आभासी दीवार के रूप में कार्य करती है।’ राजेश ने बताया कि यह प्रणाली किसी भी सुरक्षा या निगरानी प्रणाली में अत्यंत उपयोगी हो सकती है और इसकी अनुमानित लागत मात्र 65,000 रुपये है। हॉल के दूसरे छोर पर एक और छोटा सा विमान ट्रैकिंग प्रणाली (आरटीएटी) बॉक्स रखा है, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित उपग्रह-आधारित नेविगेशन, नेवीसी और सैटकॉम या सैटेलाइट कम्युनिकेशन से जुड़कर किसी स्थान का सटीकता से पता लगाता है।
इसे भी आम लोग इस्तेमाल कर सकते हैं। एयरो शो में आरटीएटी प्रदर्शनी के प्रभारी ग्रुप कैप्टन ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘मलेशियाई एयरलाइंस का वह लापता हुआ विमान याद कीजिए, जिसके बारे में कोई सुराग नहीं मिल पाया? अगर विमान के अंदर आरटीएटी बॉक्स होता तो ऐसा नहीं होता।’ ग्रुप कैप्टन के अनुसार, यह बॉक्स हर चार सेकंड में ग्राउंड स्टेशन को अपनी स्थिति के बारे में सतत और स्वचालित जानकारी देता है।
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