केडीए ने केंद्र से बातचीत पर लेह एपेक्स बॉडी के रुख का समर्थन किया, वांगचुक की तुरंत रिहाई की मांग

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नई दिल्ली, मंगलवार, 30 सितंबर 2025। कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) ने मंगलवार को केंद्र के साथ वार्ता स्थगित करने के ‘लेह एपेक्स बॉडी’ के फैसले का समर्थन करते हुए घोषणा की कि जब तक जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और अन्य लोगों को रिहा नहीं किया जाता और लेह में पिछले सप्ताह हुई पुलिस गोलीबारी की न्यायिक जांच का आदेश नहीं दिया जाता, तब तक वे वार्ता की मेज पर नहीं लौटेंगे। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर केंद्र के साथ बढ़ते गतिरोध के बीच कारगिल के नेताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक प्रमुख संगठन केडीए ने लेह स्थित अपने समकक्ष संगठन ‘लेह एपेक्स बॉडी’ (एलएबी) के साथ हाथ मिलाया है। केडीए की यह घोषणा सोमवार को एलएबी द्वारा वार्ता प्रक्रिया स्थगित करने के कदम के बाद आई है। यहां पत्रकारों से बातचीत में केडीए के सह-अध्यक्ष असगर अली करबलाई ने कहा कि गठबंधन एलएबी के साथ ‘लगातार संपर्क में’ है।

करबलाई ने कहा, ‘‘जब तक सोनम वांगचुक की रिहाई नहीं हो जाती, गिरफ्तारियां बंद नहीं हो जातीं, गिरफ्तार लोगों को रिहा नहीं कर दिया जाता और न्यायिक जांच का आदेश नहीं दिया जाता, तब तक हम केंद्र के साथ बातचीत में हिस्सा नहीं लेंगे।’’ लेह में 24 सितंबर को बंद के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा की गई गोलीबारी की कड़ी निंदा करते हुए केडीए नेता ने वांगचुक की तत्काल रिहाई की मांग की और उन्हें ‘देश का हीरो’ बताया। इस गोलीबारी में चार लोगों की जान चली गई थी। उन्होंने कहा, ‘‘अगर भारत सरकार सोचती है कि वह लद्दाखियों को डराकर उन्हें चुप करा सकती है, तो वह गलत है, हम चुप नहीं बैठेंगे। अगर आप मेरे भाई को मारकर मुझसे बात करना चाहते हैं, तो यह संभव नहीं है।’’ नेताओं द्वारा उठाया गया एक प्रमुख विवाद का मुद्दा सरकार के समर्थकों द्वारा लद्दाखियों को कथित तौर पर ‘देशद्रोही’ के रूप में चित्रित करना था।

करबलाई ने जोर देकर कहा, ‘‘हम भारत सरकार को बताना चाहते हैं कि हमें किसी के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है। हमने देश के लिए अपनी जान कुर्बान की है। लद्दाखियों को देशद्रोही के रूप में चित्रित करना बंद करें।’’ लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा ने भी कहा कि स्थानीय लोग उनके लिए इस्तेमाल किए जा रहे इस अपमानजनक संबोधन से नाराज हैं। हनीफा ने कहा, ‘‘विमर्श गढ़ा जा रहा है जिसके तहत लद्दाख के लोगों के बलिदान के बावजूद…वे हमें राष्ट्र-विरोधी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।’’

उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी मांगें संवैधानिक ढांचे के तहत हैं और अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरण सुरक्षा की लड़ाई से प्रेरित हैं। नेताओं ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि निशाने पर लेकर प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की गई। हनीफा ने दावा किया कि मृतकों में से एक, जो एक पूर्व सैनिक है, के पिता ने कहा कि उनके बेटे को गोली मारने से पहले डंडों से पीटा गया था। करबलाई ने हेलमेट पहने एक बाइक सवार युवक का मामला उद्धृत किया, जिसे कथित तौर पर ‘सिर में गोली मार दी गई’। उन्होंने कहा कि लद्दाख में कोई जवाबदेही नहीं है।

कारगिल हिल काउंसिल के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी पार्षद मोहम्मद जाफर अखून ने सरकार से उनकी मांगों को हल्के में ना लेने का आग्रह किया और केंद्रीय गृह मंत्रालय से गोलीबारी का आदेश देने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया। संगठन के अध्यक्ष थुपस्तान छेवांग और सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजय ने कहा कि बातचीत फिर से शुरू करने से पहले लद्दाख में ‘‘अनुकूल माहौल’’ बहाल करना जरूरी है। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच झड़पों में चार लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे जबकि 24 सितंबर को हुए दंगों में संलिप्तता के आरोप में 50 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था। आंदोलन का मुख्य चेहरा रहे कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को भी कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत हिरासत में लिया गया और राजस्थान के जोधपुर की एक जेल में रखा गया है।

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