जाति गणना विभाजनकारी नहीं है, इससे सामाजिक न्याय को मजबूती मिलेगी: एनसीएससी प्रमुख

नई दिल्ली, रविवार, 25 मई 2025। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) के अध्यक्ष किशोर मकवाना ने जाति गणना से समाज में विभाजन पैदा होने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि इससे एकत्र किए गए आंकड़े नीतिगत निर्णयों के लिए आधार का काम करेंगे और इनसे सामाजिक न्याय को मजबूती मिलेगी। मकवाना ने ‘पीटीआई-भाषा’ से साक्षात्कार में कहा कि इससे पिछड़े वंचित समुदायों के उत्थान में मदद मिलेगी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने अगली जनगणना में जाति गणना को शामिल करने का निर्णय किया है, जिसका स्वागत करते हुए मकवाना ने कहा कि 2011 की जनगणना के विपरीत, इस जनगणना से ‘निश्चित आंकड़े उपलब्ध होंगे’ जिससे कल्याणकारी योजनाओं तक आनुपातिक आधार पर पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी।
तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) करवाई थी। यह 1931 के बाद से देश भर में जाति के आंकड़े एकत्र करने का पहला प्रयास था। हालांकि, एसईसीसी-2011 से जाति के आंकड़े कभी भी पूरी तरह से जारी या उपयोग नहीं किए गए।
जाति जनगणना से सांप्रदायिक विभाजन पैदा होने की चिंताओं को खारिज करते हुए मकवाना ने कहा, ‘इससे जाति के आधार पर कोई विभाजन पैदा नहीं होगा। बल्कि, सामाजिक न्याय को मजबूती मिलेगी।” उन्होंने कहा, ‘इससे पिछड़ी जातियों का उत्थान होगा और अनुसूचित जाति समुदाय के लिए बाबासाहेब आंबेडकर के सपने के सभी तीन पहलुओं – सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समानता- को मजबूत मिलेगी।’ एनसीएससी अध्यक्ष ने कहा कि जाति जनगणना से सटीक आंकड़े प्राप्त होंगे, जो नीतिगत निर्णयों के लिए आधार का काम करेंगे तथा मुद्रा योजना जैसी योजनाओं के लाभार्थियों के लिए बेहतर तरीके से काम किया जा सकेगा। उन्होंने कहा, ‘इससे यह सुनिश्चित होगा कि जो लोग वंचित रह गए हैं, उन्हें आखिरकार उनका हक मिले।’
मकवाना ने स्पष्ट किया कि एनसीएससी सीधे तौर पर गणना प्रक्रिया में शामिल नहीं होगा, लेकिन जनगणना के बाद नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा, ‘आंकड़े एकत्र करने में हमारी कोई भूमिका नहीं है लेकिन आंकड़े सामने आने के बाद यह सुनिश्चित करने में आयोग की भूमिका होगी कि अनुसूचित जातियों को अनुपात के आधार पर उचित हिस्सेदारी मिले। इस लिहाज से, यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है।’ मकवाना ने पंजाब में दलितों की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा, ‘छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिल रही, कई युवा नशे की लत में पड़ गए हैं, पढ़ाई छोड़ने की दर बहुत अधिक है।”


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