दिल्ली-एनसीआर के 82 फीसदी लोगों ने कहा, उनके परिचित को प्रदूषण के कारण गंभीर समस्याएं हुईं

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नई दिल्ली, सोमवार, 15 दिसंबर 2025। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को लेकर कराए गए एक हालिया सर्वेक्षण में शामिल दिल्ली-एनसीआर के 82 फीसदी निवासियों ने माना कि उनके जानने वाले एक या अधिक लोग गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिसका कारण लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहना है। सर्वेक्षण के आंकड़े ऐसे समय आए हैं, जब देश की राजधानी धुंध की घनी चादर में लिपटी हुई है और जहरीली हवा लोगों का दम घोंट रही है।

ऑनलाइन सामुदायिक मंच ‘लोकलसर्कल्स’ के सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 28 फीसदी प्रतिभागियों ने बताया कि उनके परिवार, दोस्तों, पड़ोसियों या सहकर्मियों में कम से कम चार ऐसे व्यक्ति शामिल हैं, जो संभावित तौर पर प्रदूषण जनित स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। प्रतिभागियों के अनुसार, उनके जानने वाले लोग जिन स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, उनमें दमा, ‘क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज’, फेफड़ों को क्षति, हृदयघात, स्ट्रोक और संज्ञानात्मक गिरावट शामिल है तथा यह लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने का नतीजा है।  राष्ट्रीय राजधानी में सोमवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 498 पर पहुंच गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है।

दिल्ली के 38 मौसम निगरानी केंद्रों पर वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज की गई, जबकि दो केंद्रों पर यह ‘बेहद खराब’ श्रेणी में रही। जहांगीरपुरी में एक्यूआई 498 दर्ज किया गया, जो सभी 40 केंद्रों में सबसे खराब वायु गुणवत्ता थी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मानकों के अनुसार, एक्यूआई 0 से 50 के बीच ‘अच्छा’, 51 से 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 से 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 से 300 के बीच ‘खराब’, 301 से 400 के बीच ‘बेहद खराब’ और 401 से 500 के बीच ‘गंभीर’ माना जाता है।

दिल्ली में रविवार को एक्यूआई 461 तक पहुंच गया था, जो इस सर्दी में शहर का सबसे प्रदूषित दिन और दिसंबर में वायु गुणवत्ता के मामले में दूसरा सबसे खराब दिन रहा, क्योंकि हवाओं की मद्धिम गति और कम तापमान के कारण प्रदूषक सतह के करीब जमा रहे। सर्वेक्षण के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के बड़े हिस्से में वायु गुणवत्ता अक्टूबर के अंत से ही ‘बहुत खराब’ और ‘गंभीर’ श्रेणियों में बनी हुई है। सर्वेक्षण में चिकित्सा खर्चों को लेकर बढ़ती चिंता भी सामने आई। 73 फीसदी प्रतिभागी इस बात को लेकर चिंतित दिखे कि अगर वे लगातार उच्च प्रदूषण के संपर्क में रहते हैं, तो अपने और परिवार के सदस्यों की स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाले खर्च को वहन कर पाएंगे या नहीं।

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